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हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये :: punjabizm.com
Punjabi Poetry
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ਗੁਰਦਰਸ਼ਨ ਮਾਨ
ਗੁਰਦਰਸ਼ਨ
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हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज़्बात को मत छेड़िये

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, ज़ार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िये

- अदम गोंडवी
18 Apr 2018

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