कितने ही तारों की टिमटिमाती रौशनी तड़पायेगी तुम्हें
गौरईया की आवाज़ अगर तुम्हारी ही धुन पर गाने लगे किसी रोज
कितने ही पक्षी बेआवाज़ भटकेंगे तुम्हारे सपनों में
कितना बौना होगा पड़ोसियों की इर्ष्या भर का सुख
कितना अकेला होगा पड़ोसियों से इर्ष्या भर का दुःख
एक आवाज़ कहीं दूर से आती हुई जिस दिन नहीं पूछेगी हाल
दुनिया का सबसे मंहगा फोन भी उस दिन ठंढी लाश सा पड़ा रहेगा जेबों में
जिस दिन नहीं होगा कोई हाथ हाथों में बिना शर्त
दुनिया की सारी खूबसूरती मुह बिरायेगी ....
बहुत बुरी है दुनिया
इतनी बुरी की रोज कोई करता भविष्यवाणी इसके खत्म होने की
शुक्र है फिर भी
कि अब तक बिकाऊ नहीं चाँद, सूरज, कुछ धुनें आदिम और तुम्हारा प्यार...
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Ashok Kumar Pandey_____________