|
|
|
|
|
|
Home > Communities > Anything goes here.. > Forum > messages |
|
|
|
|
|
चीरहरण करो |
बहुत तपिश है इस छाँव में रुदन है ,हर शब्द मेरे वक़्त का ।
तुम रंगबिरंगे अंगारों का आनन्द उठाते हो ..? यह आतिशबाजी मेरे जिस्म से उठी है मेरी मौलिक अग्न ..।
मैं दीवाली नहीं मना रही ।
दुर्योधन ! मैं द्रौपदी , तेरे दरबार में हूँ । पितामह ! फल लदे वृक्ष की तरह सर न झुकाना नदीन* निकालने का वक़्त गुज़र चुका ।
आज मैं कृष्ण को नहीं पुकारुगी , मुझे अपना पेट दिखाना है मैं तैयार हूँ चीरहरण करो
(*नदीन - अनचाहे पौधे )
ਨੀਰੁ ਅਸੀਮ
नीरू असीम की पंजाबी से हिंदी में अनूदित कविता
|
|
28 Dec 2012
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
Copyright © 2009 - punjabizm.com & kosey chanan sathh
|