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लोहे के गीत |
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे दुर्गम यात्राओं पर चलने के संकल्प जगाने होंगे।
फिर से पूंजी के दुर्गों पर हमले करने होंगे। नया विश्व निर्मित करने के सपने रचने होंगे। श्रम की गरिमा फिर से बहाल करनी होगी। सुन्दरता के मानक फिर से गढ़ने होंगे। फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे।
सत्ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी। मानवता के शिल्पी बनकर आवाज़ उठानी होगी। मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी। आशाओं के रणराग हमें रचने होंगे। फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे।
शशि प्रकाश
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03 Jan 2013
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