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कठपुतलियाँ |
-------------- कठपुतलियों के पैरों में छाले हो गए हैं नाचते नाचते ... कठपुतलियों की आँखे भर आई हैं हँसते हँसते , खबर कोई अखबार नहीं दे रहा रोज पन्ने पलट रहे है कठपुतलियों की इच्छा को , स्याही की कालख में उतारने का हौसला किसी में नहीं ...
कठपुतलियाँ देखती हैं खरीदो फरोख्त का मंजर सहती है बार -बार बिकने और खरीदे जाने का खंजर
सोचती है , कैसे सिखाएँ नजरों को लिखनी इबारत ऐसी पढ़ सके बेखबर भी ....
ਨੀਰੁ ਅਸੀਮ
नीरू असीम की पंजाबी से हिंदी में अनूदित कविता
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28 Dec 2012
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