कभी-कभी ख़्याल कोई उङता सा आ जाता है,
कुछ तेरे जैसा कुछ तेरे से जुङता सा आ जाता है |
तेरी यादोँ के राहगीरोँ को मंज़िल नहीँ मिलती,
हर चौँक पे रस्ता मुङता सा आ जाता है |
लिखना है दर्द कुछ रातोँ का हिसाब भी,
मेरे सीने से जो मेरे पन्नोँ तक जाता है |
दर्द से निज़ात पाने ख्वाहिश मिट गयी,
खुशी क्या देगी मज़ा दर्द मेँ जो आता है |
यादोँ मेँ थोङा ढूँढ कर देखो किसी अजनबी को,
मैने देखा चेहरा तुम्हारा नज़र आता है |
कब तक मिटेँगे दिल से निशान दिल्लगी के,
हर वार मेरे दिल पे दिल्लगी का आता है |
इश्क की बारीकियाँ सीख के चल पङा हूँ मैँ,
ख़बरदार कर देता हूँ रस्ते मेँ जो भी आता है |
"गगनदीप सिँह"
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