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किसके लिए |
नये कपडे पहन कर जाऊ कहाँ
और बाल बनाऊ किसके लिए
वो सख्श तो शहर ही छोड़ गया
मैं बाहर जाऊं किसके लिए
वो शहर में था तो उसके लिए
औरों से भी मिलना पड़ता था
अब ऐरे गैरे लोगो के
मैं नाज़ उठाऊँ किसके लिए
जिस धूप की दिल में ठंडक थी
वो धूप उसी के साथ गई
अब जलती बलती गलीओं में
मैं खाक उडाऊं किसके लिए
मुदत से कोई आया न गया
सुनसान पड़ी इस घर की फिजां
अब खाली खाली कमरों में
मैं शमाँ जलाऊँ किसके लिए
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07 Nov 2012
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