तुम बुझते पर्दों की, इक पुख्ता आस रहे
सिल्वर-स्क्रीनों का , इतिहास रहोगे तुम
तेरे यार कैमरे ने जो अश्क बहाए हैं
उन पावन अश्कों का , इज्लास रहोगे तुम
वो दाग-वक़्त-दीवार,वो लम्हे-चांदनीआँ
...
वो कभी कभी की धूप-गुनगुनी बास रहोगे तुम
तेरे माथे में उडती ,पंजाब की माटी का
इक लाल-गुलाबी सा ,हुल्लास रहोगे तुम
तू अस्सी में आके , भी छल्ले गाए हैं
शाही स्न्यासों का , सन्यास रहोगे तुम
यहीं पास पास थे तुम,यहीं पास रहोगे तुम
इतिहास रहे हो तुम,इतिहास रहोगे तुम..