Punjabi Poetry
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ਬਿੱਟੂ ਕਲਾਸਿਕ  .
ਬਿੱਟੂ ਕਲਾਸਿਕ
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आदमी के पास इतना समय नहीं होता

 


आदमी के पास इतना समय नहीं होता ************************** आदमी के पास इतना समय नहीं होता कि हरेक चीज़ के वास्ते समय हो सके उसके पास पर्याप्त मौसम नहीं होते कि हर उद्देश्य के लिए मौसम हो धर्मोपदेशक ग़लत थे इस बारे में  आदमी को ज़रूरत होती है एक ही पल प्यार करने और नफ़रत करने की एक ही आंख से हंसने और रोने की एक ही हाथ से पत्थर फेंकने और उन्हें इकठ्ठा करने की युद्ध में प्रेम और प्रेम में युद्ध करने की  और नफ़रत करने और माफ़ करने की, और याद रखने और भूल जाने की व्यवस्थित करने और गड़बड़ा देने की, खाने और पचाने की - जिसे करने में इतिहास को सालों-साल लग जाते हैं समय नहीं होता आदमी के पास जब वह खो देता है वह ढूंढता है जब वह पा लेता है, भूल जाता है जब वह भूलता है वह प्यार करता है जब वह प्यार करता है वह भूलना शुरू करता है  और उस की आत्मा बहुत अनुभवी और पेशेवर है केवल उसकी देह ही बनी रहती है शौकिया हमेशा वह कोशिशें करता है, हारता है भटकता है कुछ नहीं सीखता - अपनी खुशियों और पीड़ाओं में धुत्त और अंधा  वह शरद में मरेगा जैसे पत्तियां मरती हैं सिकुड़ी हुईं और भरा होगा अपने आप से और मीठे से  मैदान पर पत्तियां सूख रही हैं नंगी शाखें अभी से उस जगह की ओर इशारा कर रही हैं जहां हर चीज़ के लिए समय है।  _________________ येहूदा आमीखाई ( अनुवाद - अशोक पांडे )



आदमी के पास इतना समय नहीं होता
कि हरेक चीज़ के वास्ते समय हो सके
उसके पास पर्याप्त मौसम नहीं होते
कि हर उद्देश्य के लिए मौसम हो
धर्मोपदेशक ग़लत थे इस बारे में

आदमी को ज़रूरत होती है एक ही पल प्यार करने और नफ़रत करने की
एक ही आंख से हंसने और रोने की
एक ही हाथ से पत्थर फेंकने और उन्हें इकठ्ठा करने की
युद्ध में प्रेम और प्रेम में युद्ध करने की

और नफ़रत करने और माफ़ करने की, और याद रखने और भूल जाने की
व्यवस्थित करने और गड़बड़ा देने की, खाने और पचाने की -
जिसे करने में इतिहास को सालों-साल लग जाते हैं
समय नहीं होता आदमी के पास
जब वह खो देता है वह ढूंढता है
जब वह पा लेता है, भूल जाता है
जब वह भूलता है वह प्यार करता है
जब वह प्यार करता है वह भूलना शुरू करता है

और उस की आत्मा बहुत अनुभवी और पेशेवर है
केवल उसकी देह ही बनी रहती है शौकिया हमेशा
वह कोशिशें करता है,
हारता है
भटकता है
कुछ नहीं सीखता -
अपनी खुशियों और पीड़ाओं में

 धुत्त और अंधा

वह शरद में मरेगा जैसे पत्तियां मरती हैं सिकुड़ी हुईं

और भरा होगा अपने आप से और मीठे से

मैदान पर पत्तियां सूख रही हैं

नंगी शाखें अभी से उस जगह की ओर इशारा कर रही हैं

जहां हर चीज़ के लिए समय है।


_________________ येहूदा आमीखाई ( अनुवाद - अशोक पांडे )

 

 

 

13 Jan 2013

j singh
j
Posts: 2871
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Joined: 18/Nov/2011
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ਬਹੁਤਖੂਬ........tfs.....

14 Jan 2013

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