Punjabi Poetry
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Lakhbir Singh
Lakhbir
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सिंघ गर्जना


बिछी जो घास धरती पर है , बनके खार बोलेगी
गरीबों की जुबाँ बनकर , मेरी किरपान बोलेगी 
यह गर्दन कट तो सकती है, मगर यह झुक नहीं सकती,
अभी चमकौर फिर सरहंद की, दीवार बोलेगी
छुपाये छुप नहीं सकते, शहीदों के यह अफ़साने,
अगर सूली न बोली तो लहू की धार बोलेगी
युगों तक रौशनी मिलती रहेगी इन चिरागों से,
की हर लौ अपने परवानो की जैकार बोलेगी
मिलानी आँख है अब झोंपड़ी को शीश महलों से,
बगावत की यह चिंगारी सरे-दरबार बोलेगी
न होगी पथरों की, होगी पूजा अब भगौती की,
जहाँ भी जुल्म बोलेगा वहीँ किरपान बोलेगी
कोई रोंदे नहीं इंसानियत को अपने पाओं में,
की गैरत आदमी की बनके पहरेदार बोलेगी
जहाँ रख दूं कदम अपना वहीँ होगी हर इक मंजिल,
मेरे हर कदम की गर्मी-ऐ-रफ्तार बोलेगी 
तुम्हारे पांव की बेडी जुबाँ बन जाएगी ‘पंछी’
रहोगी तुम अगर खामोश तो झंकार बोलेगी 

- स. करनैल सिंघ (सरदार पंछी)

 

 

26 Jun 2014

Sandeep Sharma
Sandeep
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Brilliant SIR
Bahut khoob g
26 Jun 2014

Lakhbir Singh
Lakhbir
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thanx veere

30 Jun 2014

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