आज दिल कुछ उदास है
देखा मैंने मुड़ के जिस मकाम पे खड़ा हूँ,
गर्दिशों को पीछे छोड़, कुछ आगे बढ़ा हूँ |
काम की है बात, या जीने का सलीका है,
समय का आदर करना भी यहीं से सीखा है |
यह साथ आज छूटेगा, न टूटेगा हरगिज़,
दिल का आप सबसे रिश्ता जो बहुत खास है,
न जाने फिर भी क्यूं आज दिल कुछ उदास है |
दस्तूर है ये, न कि ज़िद्द जाने की ठानी है,
अभी कुछ और भी जिम्मेदारियां निभानी हैं |
पर दूर रह कर भी सब का ख्याल रहेगा,
मशरूफ रहूँ या कि ना, हर हाल रहेगा |
इक आवाज़ पे हाज़री, वादा है भरूंगा,
सुख दुःख में, मैं भी आपको जब याद करूंगा,
आप साथ होंगे मेरे, ऐसा मुझे विशवास है,
न जाने फिर भी क्यूं आज दिल कुछ उदास है |
रिश्तों में प्यार पाने को कुछ खोना पड़ा है,
मिलजुल के संग, हंसना और रोना पड़ा है |
सोचा था शायरी का कोई रंग भरेंगे,
इस मुह्हबत का आपसे जब ज़िक्र करेंगे |
न अलफ़ाज़ मेरे पास कि मैं कर सकूँ बयां,
यह साथ कुछ ऐसा अज़ीम अहसास है,
न जाने क्यूं आज दिल कुछ उदास है |
जगजीत सिंह
Composed by me; but on my request, recited by a colleague officer on farewell, on my Retirement on 30th June 2015...
