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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।
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07 Aug 2012
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कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।
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07 Aug 2012
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कभी नाम बातों में आया जो मेरा तो बेचैन हो-हो के दिल थाम लोगे। निग़ाहों में छाएगा ग़म का अँधेरा। किसी ने जो पूछा सबब आँसुओं का बताना भी चाहो बता न सकोगे।.......................!!!
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07 Aug 2012
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कुछ इस तरह से जिए ज़िन्दग़ी बसर न हुई तुम्हारे बाद किसी रात की सहर न हुई सहर नज़र से मिले ज़ुल्फ़ ले के शाम आए।
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07 Aug 2012
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वही है साज़ वही गीत है वही मंज़र हर एक चीज़ वही है नहीं है तुम वो मगर उसी तरह से निग़ाहें उठें, सलाम आए।
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07 Aug 2012
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कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब आज तुम याद बेहिसाब आए।
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07 Aug 2012
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हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चरागाँ हो सामने फिर वो फिर बेनक़ाब आए।.............!!!
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07 Aug 2012
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कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं, अपने-अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैं।..................!!!
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07 Aug 2012
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मेरे लिए ये ग़ैर हैं और मैं इनके लिए बेगाना हूँ फिर एक रस्म-ए-जहाँ है जिसे निभाने आ जाते हैं।..................!!!
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07 Aug 2012
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इनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में मेरी ये मजबूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं।...................!!!
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07 Aug 2012
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